अब कहाँ बरामदे में हल्की सी धूप, कोयल की कूक,
और हवा में पत्तों का सरसराना ।
अब कहाँ आँगन का फ़र्श, प्यार भरी थपकी का स्पर्श ,
और कपास की रज़ाई में मुँह दबा के सो जाना ।
अब कहाँ वो पास पड़ोस, वो त्योहार का जमावड़ा,
और आपस में मिलकर बड़ी, पापड़ , अचार बनाना ।
अब कहाँ हाथ का सिला थैला, दोपहर में क़ुल्फ़ी का ठेला,
और मोहल्ले के दोस्त को ज़ोर से आवाज़ लगाना।
अब कहाँ माँ के हाथों की रोटी, पापा की टोका- टोकी
और रात को सबका साथ बैठ खाना खाना।
अब तो दौलत है सुविधा है आराम देह घर हैं,
बड़े बड़े घरों में छोटे gettogether हैं ।
रेस्ट्रॉंट का बफ़े है और मल्टीप्लेक्स हैं,
सबको एक दूसरे से सूपीरीऑरिटी कॉम्प्लेक्स है ।
नए और बेहतर के लिए पुराना छोड़ देते हैं ,
ज़्यादा आराम पाने को, खाना पीना छोड़ देते हैं,
और वीकेंड पे लेने के लिए चैन की दो साँस,
हम पूरा हफ़्ता जीना छोड़ देते हैं।
Outstanding Creation mam
ReplyDeleteThank you so much!
ReplyDelete